मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध Essay on My Favorite Book in Hindi
प्रस्तावना
Essay on My Favorite Book in Hindi हमारे जीवन में पुस्तकों का बहुत महत्व है। बच्चे पुस्तक पढ़कर ही बड़े होते हैं। हर युवा पहले बच्चा होता है। वह स्कूल पढ़ने जाता है। उसके मन मस्तिष्क में पढ़ी हुई किताबों का गहरा असर होता है। पुस्तकें पढ़कर ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
पुस्तकें पढ़ने से हमें शिक्षा ही नही मिलती है, बल्कि हमारे चरित्र का निर्माण भी होता है। इस निबंध में मैं अपनी प्रिय पुस्तक के बारे में बताऊंगा। मेरी प्रिय पुस्तक “रामचरित मानस” है। इसे गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है।
इस पुस्तक को पढ़ने से हमारे मन मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है। श्री राम जैसे आदर्श पुरुष की तरह बनने की इच्छा मन में पैदा होती है। रामचरितमानस पढ़ने से उत्तम चरित्र निर्माण होता है।
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प्रभु श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे। उन्होंने अपने जीवन में आदर्श पुत्र की तरह आचरण किया। सदैव पिता की आज्ञा को माना। सबसे बड़ा पुत्र होते हुए भी जब राजा दशरथ ने राम को 14 वर्षों का वनवास दिया तो उन्होंने तुरंत आज्ञा का पालन किया। अपनी पत्नी सीता और लक्ष्मण के साथ असुरों के संघार के लिए वन में चले गए।
इस पुस्तक में हनुमान के बारे में बहुत ही रोचक तरीके से बताया गया है। रावण ने अपनी शक्ति के मद में चूर होकर धोखे से माता सीता का हरण किया और उन्हें अपने साथ लंका ले गया।
उसके बाद राम और लक्ष्मण सीता माता की खोज में लग गये। अंत में राम और रावण का युद्ध हुआ और रावण मारा गया। इस पुस्तक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी व्यक्ति कितना ही बलशाली क्यों न हो, यदि वह अधर्म और अन्याय के रास्ते पर चलता है तो उसका पतन होना निश्चित है।
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श्रीरामचरितमानस पुस्तक अत्यंत रोचक है। एक बार आप पढ़ना शुरू कर देंगे तो आपकी इच्छा करेगी कि अंत तक एक बार में ही पढ़ ले। इसकी कहानी भी बहुत रोचक है। जब जब मैं श्रीरामचरितमानस पढ़ता हूं मुझे बहुत आनंद मिलता है।
इस पुस्तक में हमें प्रेम, त्याग, क्षमा, पितृभक्ति, अहंकार, घृणा, सुख-दुख, ईर्ष्या सभी भाव देखने को मिलते हैं। यह पुस्तक अपने आप में अनुपम है। इसकी कहानी भी अत्यधिक रोचक है। रामचरितमानस पुस्तक से हमें कई प्रकार के आचरण की शिक्षा मिलती है जैसे गुरु शिष्य, माता-पिता, भाई-बहन, भाई-भाई, पति-पत्नी, शत्रु मित्र सभी से कैसा आचरण करना चाहिए इसकी शिक्षा भी मिलती है।
इस पुस्तक में भरत का व्यवहार भी अत्यंत रोचक और प्रभावशाली है। भरत राम के छोटे भाई थे। जब राम वनवास को चले गए तो भारत अत्यधिक दुखी हो गए भरत राजा नहीं बनना चाहते थे। इसलिए उन्होंने राम की चरण पादुका को ही सब कुछ माना और खुद राजगद्दी पर कभी नहीं बैठे।
वह राजा नहीं बल्कि एक सेवक की तरह अयोध्या को संभालते रहे। जब राम लौटे तो भारत ने उनसे राज गद्दी संभालने की प्रार्थना की। अंत में राम अयोध्या की गद्दी पर बैठे।
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रामचरितमानस ऐसी पुस्तक है जो पूरे भारत में अत्यधिक लोकप्रिय है। घर घर में लोग इसे पढ़ते हैं। मंदिरों में यह पढ़ी जाती है। बड़े बूढ़े शाम के समय इसके कुछ पन्नों को पढ़कर आनंदित होते हैं। इस पुस्तक को पढ़ने से मन में शांति आती है और बेचैनी का भाव समाप्त होता है।
“श्री रामचरितमानस” पुस्तक से मिलने वाली शिक्षा
- सदैव धर्म का साथ देना चाहिए
- अधर्म और असुरों के विनाश के लिए अपना सुख त्याग देना चाहिए।
- सदैव माता पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए
- एक राजा को हमेशा राजधर्म का पालन करना चाहिए
- एक पति का धर्म है कि अपनी पत्नी की रक्षा करें
- छोटे भाई को बड़े भाई का साथ देना चाहिए। सुख दुख में बड़े भाई के साथ खड़े रहना चाहिए
- जो लोग अन्याय और अधर्म करते हैं उनका अंत में विनाश होता है भले ही वे कितने ही शक्तिशाली क्यों ना हो।
निष्कर्ष
एक व्यक्ति को अपने जीवन में कितने उतार-चढ़ाव देखने होते हैं, कितने संकट सुख दुख का सामना करना पड़ता है यह बात “रामचरितमानस” पुस्तक पढ़ने से पता चलती है। मैं सभी लोगों से कहूंगा कि जिन लोगों ने अभी तक यह पुस्तक नहीं पढ़ी है उन्हें अवश्य पढ़नी चाहिए। अपने आप में यह एक अनमोल पुस्तक है।
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